Rishabh tomar

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लेखनी गजल

बर्बाद होकर भी सनम लिखते है
तुम्हें जान करके शरम लिखते है

बची है छटपटाहट मौत के वक्त सी
पहले से ही कहानी खत्म लिखते है

पढ़ते हुये मुस्कुरायेंगे होंठ सबक़े
मगर गजल तो हो नम लिखते है


तुम हो छलावे सी, होकर भी नही
तभी तो आँखों का भृम लिखते है

मुझमें बसते है दो तीन औऱ लोग
इसलिये मैं को हम हम लिखते है

मैं ने ही तो जाया है अहम जग में
इसलिये भी मैं को कम लिखते है

आने वाली नश्ले न हो जाये उदास
बस यही सोच नही गम लिखते है

ऊपर वाले से बढ़ नही है कुछ भी
सिर्फ उसी को ही अहम लिखते है

तुमने मुझे दिया है धोखा जानते है
जानके भी रब का करम लिखते है

कभी तुमसे मुझको चाहत भी थी
इसे तो आँखों का वहम लिखते है

तेरी जिंदगी क्या जिंदगी है ऋषभ
चीखकर, मौन हो रहम लिखते है

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2 Comments

Varsha_Upadhyay

11-Apr-2023 07:45 PM

बहुत खूब

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Abhinav ji

10-Apr-2023 08:30 AM

Very nice

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